कोयला खनन क्षेत्र में सतत विकास सिद्धांतों को अपनाना पिछले कुछ वर्षों में जोर पकड़ रहा है। कोयला मंत्रालय ने न केवल विभिन्न क्षेत्रों की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने के लिए कोयले की उपलब्धता को सुदृढ़ करने की परिकल्पना की है बल्कि स्थानीय पर्यावरण और होस्ट कम्युनिटी की सम्यक देखरेख को प्राथमिकता दी है। कोयला क्षेत्र में सतत विकास मॉडल को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है जिसमें कोयला उत्पादन; पर्यावरण संरक्षण, संसाधन संरक्षण, समाज की देखभाल और हमारे वनों तथा जैव विविधता की रक्षा के उपायों के साथ-साथ चलता है। 

उपरोक्त लक्ष्यों के साथ, कोयला मंत्रालय ने देश में पर्यावरण की दृष्टि से सतत कोयला खनन को बढ़ावा देने और खनन प्रचालन के दौरान और खानों की डिकमिशनिंग या अंतिम रूप से बंद होने तक पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिए दिसंबर 2019 में 'सतत विकास प्रकोष्ठ' (एसडीसी) की स्थापना की है। इस कदम को और अधिक महत्व मिला है क्योंकि नई निजी कंपनियां अब भविष्य के कोयला आपूर्ति मैट्रिक्स का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने जा रही हैं। इसके बाद, एसडीसी 'सतत विकास एवं न्यायोचित परिवर्तन (एसएंडजेटी) प्रभाग जिसमें सतत विकास प्रकोष्ठ (एसडीसी) एवं न्यायोचित परिवर्तन (जेटी) अनुभाग निहित है, के रूप में उभरा है। कोयला खनन में सस्टेनेबिलिटी लाने के महत्व को पहचान दिलाने के लिए, देश में कोयला क्षेत्र की संपूर्ण छवि में सुधार करने के लिए निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ सभी कोयला/लिग्नाइट पीएसयू में भी एक सतत विकास प्रकोष्ठ (एसडीसी) को स्थापित किया गया हैः

• संधारणीय (सस्टेनेबल) तरीके से संसाधन उपयोग को बढ़ाने के लिए कोयला/ लिग्नाइट    पीएसयू द्वारा किए गए शमन उपायों से संबंधित सलाह, परामर्श देना, योजना बनाना एवं निगरानी करना।
• पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में सुधार करने के लिए खनन के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और कोयला क्षेत्रों के आस-पास एक संधारणीय पर्यावरण स्थापित करना।
• संधारणीय खनन की सर्वोत्तम पद्धतियों को साझा करना और दोहराना।
• कोयला क्षेत्र के न्यायोचित परिवर्तन पहलुओं पर जलवायु परिवर्तन के मुद्दों को उठाना।
• रिपोर्टों, फिल्मों, वृत्तचित्रों आदि के माध्यम से संधारणीयता की सर्वोत्तम पद्धतियों का प्रचार-प्रसार करना।

एसएंडजेटी प्रभाग की भूमिका

एसएंडजेटी प्रभाग कोयला कंपनियों द्वारा किए गए शमन उपायों पर सलाह देता है, योजना बनाता है और निगरानी करता है ताकि उपलब्ध संसाधनों का सतत रूप में अधिक से अधिक उपयोग किया जा सके, खनन के प्रतिकूल प्रभाव को न्यूनतम किया जा सके तथा और अधिक पारिस्थितिकी तंत्र संबंधी सेवाओं के लिए इसका शमन किया जा सके। यह कोयला क्षेत्र के पर्यावरणीय संधारणीयता और न्यायोचित परिवर्तन पहलुओं संबंधी मामलों को देखता है। 

खनन क्षेत्रों में और उसके आसपास रहने वाले लोगों और समुदायों का जीवन आसान बनाने के उद्देश्य से एसएंडजेटी प्रभाग आंकड़ों का संग्रहण, आंकड़ों का विश्लेषण, सूचना की प्रस्तुति, डोमेन विशेषज्ञों द्वारा योजना बनाना, सर्वोत्तम पद्धतियों को अपनाने, परामर्श, नवोन्मेषी सोच, स्थल-विशिष्ट दृष्टिकोण, ज्ञान साझा करने और प्रचार-प्रसार करने जैसा व्यवस्थित दृष्टिकोण अपनाता है।

महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान

कोयला कंपनियों और डोमेन विशेषज्ञों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श के बाद, एसएंडजेटी प्रभाग ने योजनाबद्ध और व्यवस्थित तरीके से काम करने के लिए कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों की पहचान की है:

  1. भूमि सुधार और वनरोपण

भारत में लगभग 2,550 वर्ग. किमी.  क्षेत्र विभिन्न कोयला खानों के अंतर्गत है और इसके तहत और अधिक क्षेत्रों को लाने की भी योजना है क्योंकि कोयले की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कोयला उत्पादन में वृद्धि होगी। प्रभावित भूखंडों में व्यापक और गहन सुधार दोनों उपायों की आवश्यकता है, जिन्हें निम्नलिखित प्रक्रिया के अनुसार किया जा रहा है/किया जाएगा:

  • कुल खान/ब्लॉक क्षेत्र, ओबी डंप क्षेत्र, पानी से भरे वॉयड्स, पुनरूद्धारित क्षेत्र, अप्रयुक्त क्षेत्र, वृक्षारोपण आदि जैसे विभिन्न कोयला कंपनियों से संबंधित सभी आधारभूत आंकड़ों/मानचित्रों को विभिन्न कोयला कंपनियों से प्राप्त करना। जीआईएस आधारित प्लेटफॉर्म पर सभी आंकड़ों/मानचित्रों का मिलान और विश्लेषण तथा सीएमपीडीआईएल की सक्रिय भागीदारी के साथ विभिन्न विषयगत जानकारी और मानचित्र तैयार करना।
  • जलवायु परिवर्तन शमन के लिए व्यापक कार्बन सिंक बनाने हेतु विशिष्ट क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पौधों की विभिन्न प्रजातियों की पहचान के साथ-साथ उन क्षेत्रों की पहचान करने में कोयला कंपनियों को सहायता प्रदान करना जहां वृक्षारोपण परियोजनाएं तुरंत शुरू की जा सकती हैं ।
  • एमसीपी के अंतर्गत समय-सीमा के अनुसार वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त अतिरिक्त भूमि के निर्माण, ढलान के स्थिरीकरण, मृदा अवशोधन, समतल भूमि के निर्माण, डी-वाटरिंग आदि के लिए शुरू की जाने वाली गतिविधियों की पहचान करना ।
  • कोयला कंपनियों में वृक्षारोपण गतिविधियों को गति प्रदान करने के लिए वृक्षारोपण अभियान का आयोजन करने हेतु कोयला/लिग्नाइट पीएसयू को प्रोत्साहित करना।
  • इंटिग्रेटिड आधुनिक टाउनशिप, कृषि, बागवानी, मान्यता प्राप्त प्रतिपूरक (एसीए) भूमि , नवीकरणीय ऊर्जा फार्म आदि जैसे पुनरूद्धारित भूमि के उत्पादकता संबंधी पुनर्उद्देश्य का अन्वेषण।
  1. वायु गुणवत्ता, उत्सर्जन और ध्वनि प्रबंधन
  • खनन गतिविधियों, हेवी अर्थ मूविंग मशीन (एचईएमएम), कोयले के परिवहन आदि के कारण उत्पन्न वायु और ध्वनि प्रदूषण से संबंधित पर्यावरणीय शमन उपायों (जल छिड़काव, धूल दमन विधियों, ध्वनि अवरोध आदि) के प्रभावी कार्यान्वयन में कोयला कंपनियों को सलाह देना।
  • खनन और संबद्ध प्रचालन, एचईएमएम के मामले में ध्वनि और उत्सर्जन में कमी के लिए विभिन्न ऊर्जा दक्षता उपायों को बढ़ावा देना।
  1. खान जल प्रबंधन
  • वर्तमान मात्रा, गुणवत्ता, सतही अपवाह, खान जल की निकासी, यूजी या ओसी कोयला खानों में एकत्रित पानी की भविष्य में उपलब्धता आदि के संबंध में आंकड़ों का संग्रह, खान जल प्रबंधन के लिए रोडमैप का विश्लेषण तथा इसे तैयार करना।
  • खान जल उपयोग योजना के रोडमैप में खान जल का स्वयं उपयोग, इनोवेटिव भंडारण, पीने, सिंचाई, मत्स्य पालन, पर्यटन, औद्योगिक या किसी अन्य सतत उद्देश्य के लिए अवशोधन और सामुदायिक उपयोग शामिल है।
  • एमओयू रूट या इसी तरह की व्यवस्था के माध्यम से सामुदायिक उपयोग के लिए खान जल के उपयोग में राज्य सरकार की एजेंसियों को शामिल करना
  1. ओवरबर्डन का लाभकारी उपयोग

ओबी की सतत रूप से री-साइकिल और पुन: उपयोग के उपायों की सलाह देना। 

ओबी सामग्री के विभिन्न उपयोगों का अन्वेषण और सुझाव देना - निर्माण परियोजनाओं में उपयोग के लिए रेत का निष्कर्षण, भराई सामग्री के रूप में परिष्कृत ओबी, सड़क/रेल में ओबी का उपयोग, मिट्टी के बांधों में उपयोग आदि।
 

  1. संधारणीय खान पर्यटन
  • मनोरंजन संबंधी क्रियाकलापों और पर्यटन उद्देश्य के लिए पुनरूद्धारित क्षेत्रों में ईको पार्कों के निर्माण की योजना, जिसमें जल निकाय आदि भी शामिल होंगे।
  • स्थानीय पर्यटन सर्किट के साथ इको-पार्कों को शामिल करना और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कुछ भूमिगत खानों को शामिल करना।
  1. योजना निगरानी और लेखा परीक्षा
  • सभी खानों में चरणबद्ध तरीके से विभिन्न शमन गतिविधियों/परियोजनाओं के निष्पादन के लिए कोयला कंपनियों के परामर्श से वार्षिक लक्ष्यों के साथ एक रोडमैप तैयार करना।
  • संधारणीयता लक्ष्यों के निष्पादन में हुई प्रगति की निगरानी और इनके निष्पादन में सहायता प्रदान करने के लिए कोयला कंपनियों के साथ नियमित बैठकें।
  • विभिन्न कोयला कंपनियों के माइन क्लोजर फंड और पर्यावरण बजट के प्रभावी उपयोग की निगरानी करना।
  • विशेषज्ञ एजेंसियों को लगा कर खानों का पर्यावरण ऑडिट।
  1. नीति अनुसंधान शिक्षा और प्रसार
  • एक मजबूत ज्ञान आधार स्थापित करने के लिए विशिष्ट अध्ययन करने हेतु विशेषज्ञों/संस्थानों/संगठनों को लगाना।
  • पर्यावरण शमन योजना और निगरानी के लिए ज्ञान के आधार, ज्ञात सर्वोत्तम वैश्विक पद्धतियों और विचारों को समृद्ध करने के लिए परामर्शी बैठकों, कार्यशालाओं, क्षेत्र के दौरे, एक्सपोजर स्टडी टूर आदि का आयोजन करना।
  • कोयला कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए उनके अधिकारियों को नई विधियों, प्रौद्योगिकियों, दृष्टिकोणों और वैश्विक पद्धति से भी अवगत कराने के लिए नियमित कार्यशाला, सेमिनार और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करना।
  • विभिन्न पर्यावरणीय विशेषताओं पर संधारणीयता रिपोर्ट प्रकाशित करना।

सभी पहलें अक्टूबर, 2022 में माननीय प्रधानमंत्री द्वारा शुरु किए गए संधारणीयता और सामुदायिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए मिशन लाइफ (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से सहायता करती हैं।